"जीवन की धार में ,अश्रुओं का भार है ,
कांटे हैं घ्रणा के तो ,
पुष्पों में बसा हुआ ,प्रेम का सिंगार है,
चलने वाले तू चला चल ,
देर कि सबेर में नूतन प्रभात है "
" लहुओं के रंग में बस आसुओं का भेद है,
पक्षिओं के घोसलों से जो भी संगीत है ,
सुख कि मृदंग पर , दुःख का गीत है
आस कर चला जो भी , टूट कर बिखर gaya
नाम तक बचा नहीं , शब्द भी नहीं बचे,
दूर तक उड़ा जो भी , पात धाक सो गिर पड़ा
कभी जो जिंदगी कि गलिओं में , ठहाकों से गूंजते
शमशानो ही शान में , आज उनका भी नाम है,
चलने वाले ,इतना जो तू समझ चला,
ठहरा-चला तू, चला -चला ,ठहरा हुआ
जिंदगी कि बेल में ,फिर तुझसे ही जान है ,
ओस कि बूदों से बना, तेरा जीवन प्रभात है "
विवेक जी
सोर्स : आनंद ही आनंद मैगज़ीन
Saturday, December 29, 2007
Saturday, December 8, 2007
जीवन जो मैंने देखा
:जीने के लिए कारणों को मत खोजो , जीवन पूरा ही अकारण है , जब तक जीवन कारणों के आधार पर खड़ा रहेगा जीवन सुख , दुःख का मेल होगा , और जैसे ही हँसने और रोने के लिए कारन विदा हो जाते हैं तब ही आनंद कि गूंज हमारे प्राणों को प्रेम का रस दे सकती है "
विवेक जी " जीवन जो मैंने देखा "
विवेक जी " जीवन जो मैंने देखा "
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