Friday, October 26, 2007

प्रेम क्या है

" जहाँ तक मैं देख पता हूँ मुझे तू यही लगता , पूरी दुनिया कम से कम प्रेम के मामले में भिखारी है , हर एक कोई प्रेम पाना चाहता है , कोई प्रेम अकारण नहीं देना चाहता , संबंध अगर कमजोर हो रहें हैं तो कारण सिर्फ इतना है , हम सब सम्बंधों में प्रेम की आशा से जाते हैं , हम प्रेम देना नहीं , पाना चाहते हैं , और दो भिखारी क्या एक दुसरे को दे सकते हैं , वो तो केवल मांग कर साकते हैं ।

विवेक जी " प्रेम -मेरी जानी "

सोर्स : आनंद ही आनंद , नेशनल मैग्जिन

Saturday, October 20, 2007

राम मेरे राम

" कृष्ण अगर मनुष्य कि सभ्यता के , विचार , तर्क और दर्शन हैं तो फिर राम मेरे देखे , हमारी सभ्यता के वो स्वरूप हैं जो स्वयमेव जीवन के प्रतिबिम्ब हैं."

Wednesday, October 10, 2007

कृष्ण मेरी आँखों से

" कृष्ण मेरे लिए उस व्यक्ति का नाम है जिसने जीवन जैसा है , उसे उसी रूप मैं स्वीकार किया था , ना तो भागा था , ना तो कुछ छोड़ा था , जीवन जो भी कुछ दिया उसे वैसे ही स्वीकार किया , जीवन मैं आनंद तभी पैदा होता है जब , हम स्वीकारने को राजी हो जाते हैं , और जीवन जब स्वीकार्यता का परिचय बन जता है तभी , होंठों से बंश्री के स्वर लहर जाते हैं , प्रेम का साहस नृत्य बनकर जीवन को आनंद का परिचय देता है "


विवेक जी " कृष्ण मेरी द्रष्टि मैं " प्रवचनांश से

सोर्स: आनंद ही आनंद , मैगजीन से

Sunday, October 7, 2007

ये प्रेम है

" जिसने कभी प्रेम ही नहीं किया , वो कभी ईश्वर को पाने कि पात्रता भी नहीं रख सकता , जो प्रेम कर सकता है , जो स्वयम प्रेम हो सकता वही एक दिन ईश्वर को पाने कि पात्रता रख सकता है , वही एक दिन परमात्मा हो सकता है , मेरे लिए परमात्मा पूजने का नहीं , सवाल परमात्मा होने का है , ये धरती अब मनुष्यों के दम पर ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकती , इस धरती को , अब जरुरत है परमात्मा कि है , और एक नहीं कई , बहुत दिनों तक इस धरती को सहारा मंदिरों मैं बैठे हुए परमात्मा नहीं दे सकते , राम और jesus जैसे लोगों को इस धरती पर चलने कि है , और हममे और आप से ही "

विवेक जी

सोर्स; " प्रेम का सूरज " प्रवचन से

विवेक जी के अनुसार धर्म

"मैं तो कहता हूँ भगवन है कि नहीं ये बड़ा सवाल नहीं है , जो हम सब पूँछ रहे हैं , अगर वो नहीं है तो हम सब को मिलकर उसे पैदा करना है , हमको भगवन होना है / बड़ा सवाल भगवन को पूजने का नहीं है , सवाल भगवन होने का है ।"

विवेक जी ,

सोर्स : आनंद ही आनंद , मैगज़ीन , जून माह \