Friday, January 15, 2010

संस्कृति बचाओ मंच और महिलाओं के अंतः वस्त्रा

संस्कृति बचाओ मंच जैसे राजनीतिक संघटन चाहे वो किसी भी राजनीतिक पार्टी के साथ संबंध रखते हों , भारतीयता के नाम पर वो कलंक हैं. इनने भारतीय संस्कृति के नाम पर भोपाल में महिलाओं के अंतः वस्त्रा बेचने वाले दुकानदार एवं इन अंतः वस्त्रों के अड्वर्टाइज़्मेंट करने वाले लोगों को चेतावनी देते हस यह कहा की अगर अब इनका पब्लिकली डिसप्ले किया गया तो इनके खिलाफ कठोर कार्यवाही की जाएगी, और यह सब कहा गया इसलिए क्योंकि यह सब इनको भारतिया संस्कृति के खिलाफ लगता है. मुझे कभी कभी बड़ा अजीब सा लगता है, की आख़िर हर तरफ औरत और इनकी स्वतंत्रता से जुड़ी बातें ही क्यो भारतिया संस्कृति के खिलाफ इन आंदोलन करने वाले लोगों को दिखती है. मैं सवाल करता हूँ, क्या भ्रस्टचार भारतिया संस्कृति के खिलाफ नहीं? क्या औरतों पे होने वाले अत्याचार भारतीय संस्कृति के खिलाफ नहीं? क्या इन्हें वो मुद्दे

Wednesday, January 13, 2010

प्रेम की पूर्णता

प्रेम की पूर्णता संभोग से नहीं, समर्पण से आती है. जो लोग संभोग से प्रेम तलाशते हैं वो पूरा जीवन अप्रेम की ज्वाला में ही जीते रहते हैं.

विवेक जी
Courtesy : Ananda hi Ananda media team

Saturday, January 9, 2010

"रंग हैं आशुओं की पलकों में"

"रंग हैं आशुओं की पलकों में,

ज़िंदगी अक्श का इरादा है

मैं जवां हूँ जिसकी धड़कन में,

उसकी साँसों में भी पहरा है,

एक ज़नाज़ा है गली में कूचों में

सुनी गलियाँ यहाँ मातम में

मेरे ज़ाने की कोशिश का असर

अब कब्र के सायों में भी पहरा है"

-विवेक जी




यह ज़िंदगी

"यह ज़िंदगी आख़िरी कहानी है,

दर्द की किश्तियों मैं

डोलती ज़वानी है,

फूल होने का दर्द

सिर्फ़ वो ही जाने

ज़िनकी अपनी फुलवारी है"

-विवेक जी