Saturday, December 29, 2007

जीवन प्रभात

"जीवन की धार में ,अश्रुओं का भार है ,

कांटे हैं घ्रणा के तो ,

पुष्पों में बसा हुआ ,प्रेम का सिंगार है,

चलने वाले तू चला चल ,

देर कि सबेर में नूतन प्रभात है "


" लहुओं के रंग में बस आसुओं का भेद है,

पक्षिओं के घोसलों से जो भी संगीत है ,

सुख कि मृदंग पर , दुःख का गीत है

आस कर चला जो भी , टूट कर बिखर gaya

नाम तक बचा नहीं , शब्द भी नहीं बचे,

दूर तक उड़ा जो भी , पात धाक सो गिर पड़ा

कभी जो जिंदगी कि गलिओं में , ठहाकों से गूंजते

शमशानो ही शान में , आज उनका भी नाम है,

चलने वाले ,इतना जो तू समझ चला,

ठहरा-चला तू, चला -चला ,ठहरा हुआ

जिंदगी कि बेल में ,फिर तुझसे ही जान है ,

ओस कि बूदों से बना, तेरा जीवन प्रभात है "



विवेक जी

सोर्स : आनंद ही आनंद मैगज़ीन

Saturday, December 8, 2007

जीवन जो मैंने देखा

:जीने के लिए कारणों को मत खोजो , जीवन पूरा ही अकारण है , जब तक जीवन कारणों के आधार पर खड़ा रहेगा जीवन सुख , दुःख का मेल होगा , और जैसे ही हँसने और रोने के लिए कारन विदा हो जाते हैं तब ही आनंद कि गूंज हमारे प्राणों को प्रेम का रस दे सकती है "



विवेक जी " जीवन जो मैंने देखा "