Sunday, October 7, 2007

ये प्रेम है

" जिसने कभी प्रेम ही नहीं किया , वो कभी ईश्वर को पाने कि पात्रता भी नहीं रख सकता , जो प्रेम कर सकता है , जो स्वयम प्रेम हो सकता वही एक दिन ईश्वर को पाने कि पात्रता रख सकता है , वही एक दिन परमात्मा हो सकता है , मेरे लिए परमात्मा पूजने का नहीं , सवाल परमात्मा होने का है , ये धरती अब मनुष्यों के दम पर ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकती , इस धरती को , अब जरुरत है परमात्मा कि है , और एक नहीं कई , बहुत दिनों तक इस धरती को सहारा मंदिरों मैं बैठे हुए परमात्मा नहीं दे सकते , राम और jesus जैसे लोगों को इस धरती पर चलने कि है , और हममे और आप से ही "

विवेक जी

सोर्स; " प्रेम का सूरज " प्रवचन से

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